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कविता

चुनरी रँगाय दा

हरेराम द्विवेदी


नैना लोभइलैं निहारि हरियरिया
मोरे बलमुआ हो
हरियर चुनरी रँगाय दा

चुनरी पहिरि हम जइबै सिवनवाँ
मोरे बलमुआ हो
आरी आरी गोटा लगवाय दा

हरियर खेतवा हरियरै चुनरिया
मोरे बलमुआ हो
हरियर सपना सजाय दा

धरती पहिरले फसिलिया कै लहँगा
मोरे बलमुआ हो
वइसइँ हम्‍मैं पहिराय दा

धरती भइल सब सुखवा कै रासी
मोरे बलमुआ हो
हमहूँ के धरती बनाया दा 


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